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मिश्रित खेती

गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान

हमारे देश में मिश्रित फसल उगाने की परम्परा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। पुराने समय में किसान भाई एक खेत में एक समय में एक से अधिक फसल उगाते थे। लेकिन इन फसलों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक करना होता है क्योंकि यदि फसलों के चुनाव के बिना किसान भाइयों ने कोई ऐसी दो फसलें एक साथ खेत में उगाई जो होती तो एक समय में ही हैं लेकिन उनके लिए मौसम, सिंचाई, उर्वरक व खाद प्रबंधन आदि अलग-अलग होते हैं । इसके अलावा कभी कभी तो ऐसा होता है कि दो फसलों में एक फसल जल्दी तैयार होती है तो दूसरी देर से तैयार होती है। एक फसल के सर्दी का मौसम फायदेमंद होता है तो दूसरे के लिए नुकसानदायक होता है। एक निश्चित दूरी की पंक्ति व पौधों से पौधों की दूरी पर बोई जाती है तो दूसरी छिटकवां या बिना पंक्ति के ही बोई जाती हैं।

Mustard Farming

फसलों का चयन बहुत सावधानी से करें

वैसे कहा जाता है कि मिश्रित खेती के लिए ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिये कि दोनों फसलों के लिए उस क्षेत्र की भूमि,जलवायु व सिंचाई की आवश्यकता उपयुक्त हों यानी एक जैसी जरूरत होतीं हों। इसके बावजूद जानकार लोगों का मानना है कि अनाज व दलहनी फसलों को मिलाकर बोने से उत्पादन अच्छा होता है लेकिन अनाज व तिलहन की फसल की बुआई से बचना चाहिये।

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एक फसल को फायदा तो दूसरे को नुकसान

wheat cultivation

मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से एक फसल को नुकसान होता है तो दूसरी फसल से कुछ अच्छी पैदावार हो जाती है। गेहूं व सरसों की मिलीजुली खेती से वर्षा की कमी से सरसों की फसल को नुकसान हो सकता है जबकि गेहूं की फसल को उतना नुकसान नही होगा वहीं सिंचाई की जल की कमी होने से सरसों की फसल अच्छी होगी जबकि गेहूं की फसल खराब हो सकती है।

क्यों सही नहीं होती एक साथ गेहूं व सरसों की खेती

गेहूं के साथ जौ, चना, मटर की फसल को अच्छा माना जाता है लेकिन गेहूं के साथ सरसों की फसल को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इन दोनों फसलों की प्राकृतिक जरूरतें अलग-अलग होतीं हैं। इन दोनों फसलों की खेती के लिए भूमि, खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था भी अलग-अलग की जाती हैं। इनका खाद व उर्वरक प्रबंधन भी अलग अलग होता है। दोनों ही फसलों की बुआई व कटाई का समय भी अलग-अलग होता है। इन दोनों फसलों को एक साथ करने से किसान भाइयों को अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

केले की खेती करने वाले किसान दें ध्यान, नही तो बढ़ सकती है मुसीबत: वैज्ञानिक

केले की खेती करने वाले किसान दें ध्यान, नही तो बढ़ सकती है मुसीबत: वैज्ञानिक

विगत कुछ सालों से किसान केले की खेती (Banana Farming) पर काफी ध्यान दे रहे हैं, क्यूंकि केले की खेती ने किसानों की आय बढ़ा दी है। आपको बता दें की केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी अभी काफी ध्यान दी हुई है, इसके लिए सरकार के द्वारा बहुत सारी योजनाएं भी बनायी गयी हैं। इसके तहत किसानों को कम दर पर ऋण भी उपलब्ध कराया जा रहा है,और सब्सिडी भी उपलब्ध करायी जा रही है, जिससे किसानों का भी ध्यान काफी बढ़ा है केले की खेती पर। वैज्ञानिकों के अनुसार केले की खेती के साथ साथ अभी किसान एक मिक्स्ड क्रोप्पिंग (Mixed Cropping) या सहफसली खेती या मिश्रित खेती कर दुगुना लाभ ले रहे हैं। मिक्स्ड क्रोप्पिंग में किसान एक ही खेत में एक ही समय में दो फसल उगा कर काफी मुनाफा कमा रहे हैं। लेकिन हाल के दिनों में केले में लगने वाले अलग अलग तरह के रोग किसानों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। आज कल केले में होने वाली बीमारी जिसका नाम श्रोट चॉकिंग (गला घुटना) है, ने तमाम किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। गौरतलब हो की उत्तर भारत के बिहार एवं उत्तरप्रदेश में केला ज्यादातर सितम्बर के महीने में लगया जाता है। सितम्बर में रोपाई के बाद केला में इस बिमारी का विकराल रूप देखने को मिलता है। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा की यह बीमारी केले के लम्बे प्रजाति के अपेक्षा बौने प्रजाति में सामान्यतः देखने को मिलती है।


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पुरे भारत में केले की खेती की जाती है। किसानों के जानकारी के लिए थ्रोट चॉकिंग (गला घोंटना; throat choking) नामक बीमारी में केले का फल का गुच्छा कुछ सामान्य तरीके से न निकल कर, असमान्य तरीके से तने को फाड़ते हुए निकलने लगता है। वरिष्ट फल वैज्ञानिकों के अनुसार, किसान को इस समय इस बीमारी से बचने के लिए केले की लम्बी प्रजाति के किस्मों का चयन करना चाहिए, क्यूंकि लम्बे प्रजाति में यह बीमारी कम पायी जाती है। वैज्ञानिकों की माने तो लम्बे प्रजाति के किस्म जैसे, चंपा, चीनी चंपा, मालभोग, कोठिय, बत्तिसा, अल्पान का प्रयोग करें और समय पर केले की रोपाई भी करें।

किसान और क्या दें ध्यान

किसानों को केले के खेत में कम से कम जलजमाव हो इसका खास ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए केले के खेत में जल निकासी का उत्तम प्रबंध भी करना चाहिए। केले के खेती में बेहतर खाद और उर्वरक का प्रयोग भी करना चाहिए, विशेषतः गर्मी के मौसम में किसानों को केले के खेत में ससमय सिंचाई भी करनी चाहिए, जिससे इसकी पैदावार अच्छी हो। किसानों का कहना है की अभी जिस तरह ये बिमारी फैल रही है, उस पर सरकार को विशेष ध्यान देकर किसानों को इससे निजात दिलाना चाहिए। अन्यथा किसान को इससे काफी नुक्सान का सामना करना पड़ेगा, थ्रोट चॉकिंग (गला घोंटना) नामक बिमारी से केले की पैदावार में काफी कमी आई है जो की किसानों के लिए चिता का विषय बना हुआ है।